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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जस्टिस लोढ़ा ने मंगलवार को कहा कि सर्वोच्च अदालत में मौजूदा हालात ‘विनाशकारी’ हैं। भले ही चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं लेकिन केसों का बंटवारा ‘उचित और संस्था के हित में होना चाहिए।’ न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस को स्टेट्समैनशिप की खूबियां दिखाते हुए इस संस्थान को आगे ले जाना चाहिए। उन्हें अपने सहयोगियों को साथ रखना चाहिए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी की किताब ‘अनीता गेट्स बेल’ के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए जस्टिस लोढ़ा ने कहा, ‘हम सुप्रीम कोर्ट में जो दौर देख रहे हैं, कम के कम इसे विनाशकारी कहा जा सकता है। यह सहशासन (कालीजिएलिटी) बहाल करने के लिए उपयुक्त समय है। जजों का दृष्टिकोण और नजरिया अलग हो सकता है, लेकिन उन्हें सुप्रीम कोर्ट को आगे ले जाने के लिए एक साझा जमीन तलाशनी होगी। इसी से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बहाल रखा जा सकेगा।
जस्टिस लोढ़ा को अपने कार्यकाल के दौरान उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ के मामले में ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था। तब एनडीए सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश से जुदा राय व्यक्त की थी। यही नहीं वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम को शीर्ष अदालत के जज बनाने की सिफारिश पर फिर से विचार करने को कहा था। हालांकि बाद में सुब्रह्मण्यम खुद ही रेस से हट गए थे।
लोढ़ा ने कहा, ‘मेरा हमेशा मानना रहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट के अगुआ होने के नाते चीफ जस्टिस पर इसे आगे ले जाने की जिम्मेदारी होती है। उन्हें सभी भाइयों एवं बहनों को साथ लेते हुए स्टेट्समैनशिप की खूबियां दिखानी चाहिए। हालांकि इस दौरान जस्टिस लोढा ने मौजूदा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नाम का उल्लेख नहीं किया।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ को शीर्ष अदालत के जज के तौर पर प्रोन्नति देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बुधवार को अहम बैठक हो सकती है। सरकार ने गत सप्ताह उनके नाम की सिफारिश पर फिर से विचार करने को कहा था।
एक अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ की सदस्यता वाला कॉलेजियम इस मुद्दे और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की ओर से चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र पर विचार करेगा।
जस्टिस जोसेफ उस पीठ के प्रमुख थे जिसने 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जस्टिस लोढ़ा ने मंगलवार को कहा कि सर्वोच्च अदालत में मौजूदा हालात ‘विनाशकारी’ हैं। भले ही चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ रोस्टर होते हैं लेकिन केसों का बंटवारा ‘उचित और संस्था के हित में होना चाहिए।’ न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस को स्टेट्समैनशिप की खूबियां दिखाते हुए इस संस्थान को आगे ले जाना चाहिए। उन्हें अपने सहयोगियों को साथ रखना चाहिए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी की किताब ‘अनीता गेट्स बेल’ के विमोचन के अवसर पर बोलते हुए जस्टिस लोढ़ा ने कहा, ‘हम सुप्रीम कोर्ट में जो दौर देख रहे हैं, कम के कम इसे विनाशकारी कहा जा सकता है। यह सहशासन (कालीजिएलिटी) बहाल करने के लिए उपयुक्त समय है। जजों का दृष्टिकोण और नजरिया अलग हो सकता है, लेकिन उन्हें सुप्रीम कोर्ट को आगे ले जाने के लिए एक साझा जमीन तलाशनी होगी। इसी से न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बहाल रखा जा सकेगा।
जस्टिस लोढ़ा को अपने कार्यकाल के दौरान उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ के मामले में ऐसी ही स्थिति का सामना करना पड़ा था। तब एनडीए सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश से जुदा राय व्यक्त की थी। यही नहीं वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम को शीर्ष अदालत के जज बनाने की सिफारिश पर फिर से विचार करने को कहा था। हालांकि बाद में सुब्रह्मण्यम खुद ही रेस से हट गए थे।
लोढ़ा ने कहा, ‘मेरा हमेशा मानना रहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। कोर्ट के अगुआ होने के नाते चीफ जस्टिस पर इसे आगे ले जाने की जिम्मेदारी होती है। उन्हें सभी भाइयों एवं बहनों को साथ लेते हुए स्टेट्समैनशिप की खूबियां दिखानी चाहिए। हालांकि इस दौरान जस्टिस लोढा ने मौजूदा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के नाम का उल्लेख नहीं किया।
जस्टिस जोसेफ के नाम पर फिर से विचार के लिए कॉलेजियम की अहम बैठक आज
उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसेफ को शीर्ष अदालत के जज के तौर पर प्रोन्नति देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की बुधवार को अहम बैठक हो सकती है। सरकार ने गत सप्ताह उनके नाम की सिफारिश पर फिर से विचार करने को कहा था।
एक अधिकारी ने मंगलवार को कहा कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ की सदस्यता वाला कॉलेजियम इस मुद्दे और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की ओर से चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र पर विचार करेगा।
जस्टिस जोसेफ उस पीठ के प्रमुख थे जिसने 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लगाने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को खारिज कर दिया था।
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