दो-दो सीटों से चुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपनी पुरानी सीट चामुंडेश्वरी और पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी अपनी नई सीट चन्नपट्टण में कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं।
मैसूर को चारो तरफ से घेरे हुए चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट पर माता चामुंडा का आशीर्वाद मुख्यमंत्री और और कांग्रेस के खेवनहार सिद्धारमैया और उनके मुकाबले में जद(एस) के विधायक और पुराने दोस्त जी टी देवेगौड़ा में किसे मिलेगा इसे कहने की हालत में न यहां के राजनीतिक विश्लेषक हैं और न ही स्थानीय लोग। पूछने पर एक ही जवाब होता है कि मुकाबला कांटे का है और दोनों के जीतने हारने की संभावना बराबर बराबर है।
इसी तरह खिलौना नगरी चन्नपट्टण में लगातार चार बार से विधायक चुने जा रहे भाजपा के सीपी योगेश्वर देवेगौड़ा पुत्र कुमारस्वामी को जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार के मंत्री रेवन्ना को मैदान में उतारकर कांग्रेस ने मुकाबले को तिकोना बनाने की कोशिश की है, लेकिन मुकाबलार कुमारस्वामी और योगेश्वर में ही है।
मैसूर से बाहर निकलते ही चामुंडेश्वरी विधानसभा क्षेत्र शुरु हो जाता है, बल्कि मैसूर के कुछ बाहरी हिस्सा जो इस क्षेत्र में हैं, उन्हें चामुंडेश्वरी शहर कहा जाता है। शहर से कुछ दूर पर्वत शिखर पर स्थित माता चामुंडा देवी के प्रसिद्ध मंदिर की वजह से ही इस विधानसभा क्षेत्र का नाम चामुंडेश्वरी पड़ा है।
सिद्धारमैया यहां से पहली बार 2006 में हुए उपचुनाव में तब जीते थे, जब उन्होंने जनता दल(एस) से कांग्रेस में पाला बदला था। 2008 में फिर यहां से जीते, लेकिन 2013 में वह इसे छोड़कर अपनी गृह सीट वरुणा चले गए, जो परिसीमन के बाद अलग सीट बन गई थी। तब यहां जद(एस) के जीटी देवैगौड़ा जीते।
इस बार वरुणा से अपने बेटे को मैदान में उतारकर सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी आ गए। लेकिन वोक्कालिंगा बहुल इस सीट पर मुकाबला कड़ा होने की भनक लगते ही मुख्यमंत्री करीब छह सौ किलोमीटर दूर बादामी सीट से भी चुनाव में उतर गए।
चामुंडेश्वरी शहर में चाय की दुकान पर बैठे महादेवा, लिंगप्पा, जगदीश, कालाचारी, वासवन्ना, शंकर, रामचंद्रा, ईश्वर आदि से बात होती है। सभी पेशे से किसान हैं। इनके मुताबिक जद(एस) का पलड़ा भारी है।
इनका कहना है कि लोगों में सिद्धारमैया द्वारा सीट छोड़ने की कसक भी है। एक बार जाने के बाद क्षेत्र को घूमकर भी नहीं देखा। लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने पर अध्यापिका सुमा कहती हैं कि उनकी पसंद मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राज्य में अच्छा काम किया है।
देहाती इलाके में जाते जाते तस्वीर बदलने लगती है। यहां किसी एक के भी जीतने का दावा कोई नहीं करता। जेट्टीहुँडी गांव में रवि कहते हैं कि पूरा चुनाव जातीय गोलबंदी पर हो रहा है।
वोक्कालिंगा पूरी तरह जद(एस) के साथ एकजुट हैं, तो कुर्बा और दलित व अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन सिद्धारमैया के साथ है। उनके गांव में ही इसी तरह का बंटवारा है। कुछ इसी तरह की तस्वीर कुमारबिडू गांव में भी मिलती है।
अनुसूचित जनजाति नायक बहुल इस गांव में लोग इस तर्क के साथ सिद्धारमैया का समर्थन करते हैं कि विधायक से मुख्यमंत्री चुनना ज्यादा फायदेमंद है। इस गांव के वेंकंटेश, रघु, कृष्णा नायक,अपूर्व नायक, रवि नायक सब कांटे के मुकाबले की ही बात कहते हैं। दिलचस्प है कि भाजपा उम्मीदवार गोपाल राव की चर्चा ही नहीं हो रही है। पूछने पर लोग कहते हैं कि उनका कोई अता पता नहीं है।
लकड़ी के खिलौनों के लिए मशहूर चेन्नपट्टन में भाजपा उम्मीदवार सीडी योगेश्वर अपने बलबूते पर एच.डी. कुमारस्वामी को टक्कर दे रहे हैं। योगेश्वर पहली बार निर्दलीय जीते थे। फिर कांग्रेस से जीते। पिछली बार वह समाजवादी पार्टी के निशान पर लड़े और जीते। इस बार वह भाजपा के टिकट पर लड़ रहे हैं।
योगेश्वर भी वोक्कालिंगा हैं और उनकी खासी लोकप्रियता ने कुमारस्वामी के साथ साथ कांग्रेस के वोक्कालिंगा नेता डी.के. शिवकुमार को भी बेचैन कर रखा है। चर्चा है कि योगेश्वर को निबटाने के लिए ही शिवकुमार की सहमति से कुमारस्वामी यहां से मैदान में आ गए, जबकि पड़ोस की सटी रामनगर सीट पर उनकी एकतरफा जीत में किसी को संदेह नहीं है।
कन्न्ड फिल्म अभिनेता और निर्माता रहे योगेश्वर के पक्ष में चन्नपट्टन में कड़वा जलाशय का निर्माण बहुत बड़ा मुद्दा है। इससे इस शहर का जलसंकट दूर हो गया है। उनकी उपलब्धता और क्षेत्र के लिए काम करना भी उनके पक्ष में है। शहर के बाजार में मिले दुकानदार विनोद, शिव और मेनका की यही राय है।
हालांकि चन्नपट्टण योजना प्राधिकरण के अध्यक्ष और ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष ए.सी.वीरगौड़ा दावा करते हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार रेवन्ना की जीत तय है और योगेश्वर तीसरे नंबर पर हैं। लेकिन आम लोग उनके इस दावे से सहमत नहीं दिखते।
दो-दो सीटों से चुनाव लड़ रहे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अपनी पुरानी सीट चामुंडेश्वरी और पूर्व मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी अपनी नई सीट चन्नपट्टण में कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं।
मैसूर को चारो तरफ से घेरे हुए चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट पर माता चामुंडा का आशीर्वाद मुख्यमंत्री और और कांग्रेस के खेवनहार सिद्धारमैया और उनके मुकाबले में जद(एस) के विधायक और पुराने दोस्त जी टी देवेगौड़ा में किसे मिलेगा इसे कहने की हालत में न यहां के राजनीतिक विश्लेषक हैं और न ही स्थानीय लोग। पूछने पर एक ही जवाब होता है कि मुकाबला कांटे का है और दोनों के जीतने हारने की संभावना बराबर बराबर है।
इसी तरह खिलौना नगरी चन्नपट्टण में लगातार चार बार से विधायक चुने जा रहे भाजपा के सीपी योगेश्वर देवेगौड़ा पुत्र कुमारस्वामी को जबरदस्त टक्कर दे रहे हैं। हालांकि राज्य सरकार के मंत्री रेवन्ना को मैदान में उतारकर कांग्रेस ने मुकाबले को तिकोना बनाने की कोशिश की है, लेकिन मुकाबलार कुमारस्वामी और योगेश्वर में ही है।
वोक्कालिंगा बहुल इस सीट पर मुकाबला कड़ा
मैसूर से बाहर निकलते ही चामुंडेश्वरी विधानसभा क्षेत्र शुरु हो जाता है, बल्कि मैसूर के कुछ बाहरी हिस्सा जो इस क्षेत्र में हैं, उन्हें चामुंडेश्वरी शहर कहा जाता है। शहर से कुछ दूर पर्वत शिखर पर स्थित माता चामुंडा देवी के प्रसिद्ध मंदिर की वजह से ही इस विधानसभा क्षेत्र का नाम चामुंडेश्वरी पड़ा है।
सिद्धारमैया यहां से पहली बार 2006 में हुए उपचुनाव में तब जीते थे, जब उन्होंने जनता दल(एस) से कांग्रेस में पाला बदला था। 2008 में फिर यहां से जीते, लेकिन 2013 में वह इसे छोड़कर अपनी गृह सीट वरुणा चले गए, जो परिसीमन के बाद अलग सीट बन गई थी। तब यहां जद(एस) के जीटी देवैगौड़ा जीते।
इस बार वरुणा से अपने बेटे को मैदान में उतारकर सिद्धारमैया चामुंडेश्वरी आ गए। लेकिन वोक्कालिंगा बहुल इस सीट पर मुकाबला कड़ा होने की भनक लगते ही मुख्यमंत्री करीब छह सौ किलोमीटर दूर बादामी सीट से भी चुनाव में उतर गए।
जद(एस) का पलड़ा भारी
चामुंडेश्वरी शहर में चाय की दुकान पर बैठे महादेवा, लिंगप्पा, जगदीश, कालाचारी, वासवन्ना, शंकर, रामचंद्रा, ईश्वर आदि से बात होती है। सभी पेशे से किसान हैं। इनके मुताबिक जद(एस) का पलड़ा भारी है।
इनका कहना है कि लोगों में सिद्धारमैया द्वारा सीट छोड़ने की कसक भी है। एक बार जाने के बाद क्षेत्र को घूमकर भी नहीं देखा। लेकिन थोड़ा आगे बढ़ने पर अध्यापिका सुमा कहती हैं कि उनकी पसंद मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने राज्य में अच्छा काम किया है।
देहाती इलाके में जाते जाते तस्वीर बदलने लगती है। यहां किसी एक के भी जीतने का दावा कोई नहीं करता। जेट्टीहुँडी गांव में रवि कहते हैं कि पूरा चुनाव जातीय गोलबंदी पर हो रहा है।
वोक्कालिंगा पूरी तरह जद(एस) के साथ एकजुट हैं, तो कुर्बा और दलित व अन्य पिछड़े वर्गों का समर्थन सिद्धारमैया के साथ है। उनके गांव में ही इसी तरह का बंटवारा है। कुछ इसी तरह की तस्वीर कुमारबिडू गांव में भी मिलती है।
विधायक से मुख्यमंत्री चुनना ज्यादा फायदेमंद
अनुसूचित जनजाति नायक बहुल इस गांव में लोग इस तर्क के साथ सिद्धारमैया का समर्थन करते हैं कि विधायक से मुख्यमंत्री चुनना ज्यादा फायदेमंद है। इस गांव के वेंकंटेश, रघु, कृष्णा नायक,अपूर्व नायक, रवि नायक सब कांटे के मुकाबले की ही बात कहते हैं। दिलचस्प है कि भाजपा उम्मीदवार गोपाल राव की चर्चा ही नहीं हो रही है। पूछने पर लोग कहते हैं कि उनका कोई अता पता नहीं है।
लकड़ी के खिलौनों के लिए मशहूर चेन्नपट्टन में भाजपा उम्मीदवार सीडी योगेश्वर अपने बलबूते पर एच.डी. कुमारस्वामी को टक्कर दे रहे हैं। योगेश्वर पहली बार निर्दलीय जीते थे। फिर कांग्रेस से जीते। पिछली बार वह समाजवादी पार्टी के निशान पर लड़े और जीते। इस बार वह भाजपा के टिकट पर लड़ रहे हैं।
योगेश्वर भी वोक्कालिंगा हैं और उनकी खासी लोकप्रियता ने कुमारस्वामी के साथ साथ कांग्रेस के वोक्कालिंगा नेता डी.के. शिवकुमार को भी बेचैन कर रखा है। चर्चा है कि योगेश्वर को निबटाने के लिए ही शिवकुमार की सहमति से कुमारस्वामी यहां से मैदान में आ गए, जबकि पड़ोस की सटी रामनगर सीट पर उनकी एकतरफा जीत में किसी को संदेह नहीं है।
कन्न्ड फिल्म अभिनेता और निर्माता रहे योगेश्वर के पक्ष में चन्नपट्टन में कड़वा जलाशय का निर्माण बहुत बड़ा मुद्दा है। इससे इस शहर का जलसंकट दूर हो गया है। उनकी उपलब्धता और क्षेत्र के लिए काम करना भी उनके पक्ष में है। शहर के बाजार में मिले दुकानदार विनोद, शिव और मेनका की यही राय है।
हालांकि चन्नपट्टण योजना प्राधिकरण के अध्यक्ष और ब्लाक कांग्रेस अध्यक्ष ए.सी.वीरगौड़ा दावा करते हैं कि कांग्रेस उम्मीदवार रेवन्ना की जीत तय है और योगेश्वर तीसरे नंबर पर हैं। लेकिन आम लोग उनके इस दावे से सहमत नहीं दिखते।
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