Pakistan parliament passed resolution to rename university department named after first Nobel laureate Abdus Salam
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Publish Date:Fri, 04 May 2018 08:19 AM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। पाकिस्तान में इस्लाम न मानने वालों अथवा इस्लाम से जबरन खारिज किए गए लोगों के साथ किस कदर बदसलूकी होती है और उस पर वहां की नेशनल एसेंबली यानी संसद भी मुहर लगाने में संकोच नहीं करती, इसका एक शर्मनाक प्रमाण गुरुवार को तब फिर मिला जब इस एसेंबली ने अहमदिया समुदाय के नोबल विजेता वैज्ञानिक प्रो अब्दुस सलाम के प्रति घोर असम्मान जताते हुए कायदे आजम विश्वविद्यालय में उनके नाम पर रखे गए नेशनल फिजिक्स सेंटर यानी फिजिक्स डिपार्टमेंट से उनका नाम हटाने के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। यह प्रस्ताव मंजूर होने की खबर मिलते ही विवि ने उनका नाम तत्काल प्रभाव से हटा भी दिया। इस प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि इसे याद रखा जाना चाहिए कि पाकिस्तान दो राष्ट्र के सिद्धांत पर बना था। प्रस्ताव की ऐसी भाषा पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक मानी जा रही है। एक अजीब बात यह भी है कि यह प्रस्ताव पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के दामाद कैप्टन सफदर लाए थे। सबसे शर्मनाक यह रहा कि यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद पाकिस्तान की सिविल सोसाइटी के लोग और कई पत्रकार, मानवाधिकारवादी अपने सांसदों को कोसने में लगे हुए हैं। ज्यादातर का स्वर यही है कि इस मुल्क का कुछ नहीं हो सकता।
अब्दुस सलाम की बेकदरी करने वाला यह प्रस्ताव इसलिए भी हैरानी भरा रहा, क्योंकि इस्लामाबाद के कायदे आजम विश्वविद्यालय के फिजिक्स डिपार्टमेंट का नाम अब्दुस सलाम के नाम पर रखने का फैसला 2016 में नवाज शरीफ के प्रधानमंत्री रहते समय लिया गया था। इस विवि के फिजिक्स डिपार्टमेंट को अब्दुस सलाम का नाम दिए जाने की पहल पाकिस्तान की सिविल सोसाइटी और खासकर शिक्षक, वैज्ञानिक आदि एक अर्से से कर रहे थे। अब्दुस सलाम के नाम को फिजिक्स डिपार्टमेंट से खारिज करने के नेशनल एसेंबली के फैसले को अल्पसंख्यकों की अनदेखी और उपेक्षा के बढ़ते सिलसिले के तौर पर देखा जा रहा है। ज्ञात हो कि हाल के समय में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़े हैं।
अब्दुस सलाम को जब नोबेल पुरस्कार मिला था तो उन्हें यह सम्मान पाने वाले पहले मुस्लिम वैज्ञानिक के तौर पर देखा गया था। वह पाकिस्तान के एक मात्र ऐसे वैज्ञानिक रहे हैं जिन्हें नोबेल सम्मान मिला, लेकिन उन्हें अपने ही देश में कदम-कदम पर बेइज्जत किया गया। यह सिलसिला उनकी मौत के बाद भी जारी रहा। पहले उनकी कब्र में उनके नाम से यह उल्लेख हटा दिया गया कि वह मुस्लिम हैं और अब उनके नाम वाले फिजिक्स डिपार्टमेंट का नया नामकरण कर दिया गया। पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को 1974 में बाकायदा संविधान संशोधन के जरिये इस्लाम से खारिज कर दिया गया था। इसके बाद से उनकी प्रताड़ना का वैसा ही सिलसिला कायम है जैसा पाकिस्तान में रह रहे हिंदुओं, सिखों और ईसाइयों का है। अहमदिया समुदाय की मस्जिदों पर हमले होना आम बात है। उन्हें हर तरह के दमन का शिकार तो होना ही पड़ता है, उन्हें यह भी इजाजत नहीं कि वे अपने को मुस्लिम कहें।
कुछ समय पहले जब “गॉड पार्टिकल” की खोज हुई थी तो दुनिया भर में अब्दुस सलाम को याद किया गया था, क्योंकि इस खोज की शुरुआती आधारशिला उन्होंने ही रखी थी। जब सारी दुनिया की वैज्ञानिक बिरादरी अब्दुस सलाम का स्मरण कर रही थी तब पाकिस्तान में किसी ने उनका नाम तक नहीं लिया। पाकिस्तान का यह रवैया इतना हैरानी भरा था कि इसका जिक्र सीएनएन के एक खास कार्यक्रम में किया गया।
पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में अल्पसंख्यकों के प्रति नफरत को बयान करने वाले आए प्रस्ताव में कायदे आजम विवि के फिजिक्स डिपार्टमेंट से अब्दुस सलाम का नाम हटाकर खगोलशास्त्री अबू अल फतह अब्दुल रहमान का नाम जोड़ने का फैसला किया गया है। अब पाकिस्तान के आम लोग यह जानने में लगे हुए हैं कि यह महाशय कौन हैं और आखिर इनका पाकिस्तान से क्या ताल्लुक है?
By Nancy Bajpai
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